जिंदगी जीने के तीन नियम
१) ज्यादातर लोग एक बेचैनी हर समय अपने साथ लिए फिरते हैं. फिक्र जो अपने बारे में नहीं,दुसरों से जुडी होती है.उन्हे क्या पहनना चाहीए?क्या कहना चाहीए? कैसे रहना चाहीए? जीवन में क्या करना चाहीए,क्या नहीं आदि? लेखक पाउलो कोएलो कहते हैं, ‘हर व्यक्ती यह साफ -साफ सोच पाता है कि दुसरे लोगों को अपनी जिंदगी में क्या करना चाहीए.बस उन्हे अपनी ही जिंदगी का पता नहीं होता.’

२) जिंदगी में लेन-देन चलते रहते हैं. लेने और देने की कुव्वत हर व्यक्ती में होती है.एक समय में हम कुछ ले रहे होते हैं, तो उसी समय बहुत कुछ दे भी रहे होते हैं.फर्क है तो बस यह कि किस भाव से ले रहे हैं और किस भाव से दे रहे हैं.चिंतक खलील जिब्रान कहते हैं, ‘उदारता इसमें है कि आप सामर्थ्य से ज्यादा देते हैं और गर्व इसमें है कि आप जितनी जरूरत है,उससे कम लेते हैं.’
३) प्रेम सबके भीतर है.बस कहीं-कहीं उसे भीतर तक खोदना पडता है,एक बार जब यह स्रोत फूट पडता है तो चंद चेहरों या रिशतों तक नहीं रूकता.जितना बांटते हैं,उतना बढने लगता है.दिल तूटता है,तो भी बेचैन न हों दिल की हर चोट उसी प्रेम तक पहुचंने का जरिया भर है. सुफी दार्शनिक रुमी कहते हैं, ‘अपने दिल पर तब तक चोट करते रहें,जब तक वह खुल नहीं जाता.’