क्या आप अपने स्टार्टअप को ग्लोबल बनाना चाहते हैं ?

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कुछ स्टार्टअप्स, डोमेस्टिक या लोकल मार्केट पर पकड़ मजबूत होने को ही अपनी जीत मान लेते हैं जबकि कुछ अधिक महत्वाकांक्षी स्टार्टअप अपने आइडिया को ग्लोबल पहचान दिलाने की इच्छा रखते हैं. बिजनेस के विस्तार के लिए भी ग्लोबल पहचान बनाने की जरुरत होती है. हालांकी स्टार्टअप को बढ़ाना और ग्लोबल पहचान बनाना, दोनों ही चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन सही प्लानिंग से यह संभव है.

अक्सर कहा जाता है की आपको भागने से पहले चलना सीखना चाहिए और उसके लिए भी प्लानिंग की जरुरत होती है. यहाँ हम ऐसे ही कुछ तरीकों के बारे में  बात करेंगे जो ग्लोबल मार्केट मे बिजनेस को ले जाने में आपकी मदद करने के साथ ही दुनियाभर में आपकी पहचान बनाने में भी मदद करेंगे.

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क्या आप अपने स्टार्टअप को ग्लोबल बनाना चाहते हैं ?

किसी यूनिवर्सल प्रॉब्लम का हल निकालने के लिए प्रयास करें   

दुनियाभर में कहीं भी हो, लोग लगभग एक जैसे ही होते हैं. हालांकी, उनके बिच संस्कृति और भाषाओँ का ही फर्क होता है, सामाजिक स्टार पर बहुत से अंतर होते हैं. जगह के हिसाब से व्यवहार भी बदल जाते हैं, लेकिन ज्यादातर स्थितियों में लोगों को एक ही तरह की जरूरतें होती हैं. यही वजह है की जो स्टार्टअप किसी बड़ी और सामान्य समस्या का कलात्मक समाधान ला सकते हैं वे ग्लोबली सफल हो जाते हैं.

उदाहरण के तौर पर एक एफिशियंट सोलरपैनल या ऐसा शर्ट जिसको आयरन करने की जरुरत न हो या फिर कोई हेल्दी फ़ूड आइटम, ये सभी ग्लोबली पसंद आने वाले आइडियाज हैं. इस तरह की कॉमन प्रोब्लम्स के लिए समाधान निकालने की कोशिश करें और सुनिश्चित करें कि आपका  कॉन्सेप्ट कम से कम शब्दों में लोगों तक पहुंचाया जा सके. साथ ही अपने प्रॉडक्ट में फेल्क्सिबिलिटी की संभावना भी रखें जिससे की यह तय हो सके की आप उनमें जगह के हिसाब से बदलाव लाते रहेंगे.

अपने बिजनेस को और बढ़ाने में लगने वाला समय लेने से न डरें

जो बिजनेस अपनी ग्रोथ चाहते हैं वे इसमें लगने वाला समय लेने से डरते नहीं है क्योंकि वे हमेशा इस डर से घिरे रहते हैं की कोई उनके आइडिया को कॉपी न कर ले या कोई कॉम्पिटिशन में न आ जाए. ध्यान रखें की बिजनेस हमेशा किसी गलती से ही डूब सकता है.

इसका एक सटीक उदाहरण है उबर कंपनी, जिसकी विस्तार की स्ट्रैटजी थी की वह पहले मूव करे और बाद में ग्राउंड वर्क करे. इसी वजह से मार्केट में अपनी तरह की पहली कंपनी होने के बावजूद क़ानूनी गलतियों और रिसर्च की कमी की वजह से उसे नुकसान उठाना पड़ा. साथ ही उन्हें कल्चरल बैरियर का सामना भी करना पड़ा और इसका फायदा घरेलु प्रतिद्वंदी कंपनियों ने उठाया.

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